रिहा खुद को किया आज मैंने उन कुरीतिओं से...जो करती थीं घात। रिहा खुद को किया आज मैंने उन कुरीतिओं से...जो करती थीं घात।
यह कविता एक कटाक्ष है उस समाज पर यहाँ नारी के साथ ऐसा सुलूक़ किया जाता है ............ यह कविता एक कटाक्ष है उस समाज पर यहाँ नारी के साथ ऐसा सुलूक़ किया जाता है ..........
ऐसा कोई नहीं काम जो ना कर सको तुम ऐसा हो।। ऐसा कोई नहीं काम जो ना कर सको तुम ऐसा हो।।
ऐसा कोई नहीं काम जो ना कर सको तुम ऐसा हो। ऐसा कोई नहीं काम जो ना कर सको तुम ऐसा हो।
नारी हो तुम सत्य की साक्षी हो। ओह नारी, तुम कभी झूठ बनना मत। नारी हो तुम सत्य की साक्षी हो। ओह नारी, तुम कभी झूठ बनना मत।
पता नहीं लोग क्यों यह भूल जाते हैं, यह शरीर भी, नारी की ही तो देन है । पता नहीं लोग क्यों यह भूल जाते हैं, यह शरीर भी, नारी की ही तो देन है ।